आध्यात्मिक जीवन अपनाने का सच्चा अर्थ असत्य से सत्य की ओर जाना, निष्कृष्ट जीवन से उत्कृष्ट जीवन की ओर बढ़ना है : रामजीवन दास

स्वतंत्र समाचार। महासमुंद

तेंदुकोना के समीपस्थ ग्राम टूरीझर में सद्गुरु कबीर त्रिदिवसीय सत्संग समारोह आयोजन के द्वितीय दिवस के पावन अवसर पर – सुदूर अंचलों से आये हुए भक्तजनों को जीवन जीने की कला को बताते हुए सतगुरु कबीर साहेब के पावन दर्शन में सहज समाधि, ध्यान की क्या प्रक्रिया है पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री ने बताया कि आध्यात्मिक जीवन अपनाने का सच्चा अर्थ असत्य से सत्य की ओर जाना प्रेम और न्याय का आदर करना निष्कृष्ट जीवन से उत्कृष्ट जीवन की ओर बढ़ना। अर्थात जीवन में सेवा भक्ति सद्गुण और सत्संग के द्वारा सत्य ज्ञान को प्राप्त कर जीवन मुक्त हो जाने की साधना को आध्यात्मिक कहते हैं।

आगे आचार्य श्री ने बताया कि ध्यान एक ऐसी विधा है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है यह अभ्यास के द्वारा साधना की उच्च स्थिति प्राप्त कर लेने पर साधक का उस परम सत्ता परमात्मा से नित्य निरंतर का प्रत्यक्ष संबंध होता है। पूज्य आचार्य रामजीवन शास्त्री जी साहब ने कहा कि सदियों से पड़ा पत्थर एक बार कारीगर के हाथ में आने पर मंदिर और भगवान बन जाता है तो बार-बार मंदिर आने पर भी इंसान महान क्यों नहीं बन पाता क्योंकि व्यक्ति सिर्फ भक्ति में भी औपचारिकता ही मात्र करता है क्योंकि गुरु ही वह कारीगर है जो उस अज्ञानी और पत्थर जैसे हृदय को अपने ज्ञान रूपी औजार से महान बना देते हैं।

आज ऐसे करीगार रूपी गुरु की नितांत आवश्यकता है जो उस पत्थर से भगवान बनाता है, साधारण कारीगर की बनी मूर्ति तो केवल मंदिर में ही पूजी जाती है परंतु सद्गुरु एक ऐसे कारीगर हैं अनोखे कारीगर हैं जो पत्थर हृदय वाले शिष्य में भी सद्गुणों की कलाकृति संस्कारों की सुंदरता तथा सत्य ज्ञान की प्राण प्रतिष्ठा करके त्रिलोक में पूज्य बना देते हैं केवल आवश्यकता है तो शिष्य के सच्चे आत्मसमर्पण की।
अतः अपने आप को गुरु के चरणों में समर्पित करके ही हम मोक्ष और कल्याण को, परमतत्व को प्राप्त कर सकते है।

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